नई दिल्ली। एक तरफ सीएनजी ऑटो वाले जहां अपने ऑटो को इलेक्ट्रिक में बदलने का विरोध कर रहे हैं। वहीं, ग्रामीण सेवा चलाने वाले अपने वाहन को इलेक्ट्रिक में बदलने के लिए आगे आए हैं। ये लोग चाहते हैं कि इनके पुराने हो चुके ग्रामीण सेवा वाहनों को इलेक्ट्रिक में बदला जाए।
दिल्ली में करीब 6000 ग्रामीण सेवा वाहन चलते हैं। इनकी जगह पर इलेक्ट्रिक में बदलने का इन्हें परमिट तभी मिल सकता है जब इन वाहनों पर कोरोना काल के समय से बकाया मोटे-मोटे चालान का भुगतान किया जाए। इन्हें माफ किए जाने के लिए ग्रामीण सेवा संचालकों ने मुख्यमंत्री से मांग की है।
दिल्ली में ग्रामीण सेवा की शुरुआत सन 2010 में की गई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने डीजल बसों पर दिल्ली में बिल्कुल प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय की शीला सरकार ने बसों की एकाएक हो गई कमी को देखते हुए फैसला लिया था कि ग्रामीण इलाकों में लास्टमाइल कनेक्टिविटी का साधन उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण सेवा वाहन चलाए जाएं।
परिवहन विभाग का नियम है कि जब तक इन चालान का परिवहन विभाग का नियम है कि जब तक इन चालान का भुगतान नहीं किया जाता है तब तक इन वाहन मालिकों के नाम से इलेक्ट्रिक का परमिट जारी नहीं किया जा सकता है। भाजपा सरकार जब से सत्ता में आई है ग्रामीण सेवा संचालक लगातार सरकार से संपर्क बनाए हुए हैं और मुख्यमंत्री से मिलने के लिए भी समय मांगा हुआ है।
कैपिटल ड्राइवर वेलफेयर एसोसिएशन के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष चंदू चौरसिया का कहना है कि मुख्यमंत्री हस्तक्षेप करें और इन चालान को माफ कराएं। जिसमें से बड़ी संख्या में चालान कोरोना महामारी के समय जारी किए गए हैं।उन्होंने कहा कि पूर्व की आप सरकार ने इन्हें माफ कराने का भी भरोसा दिया था जो माफ नहीं किए गए।